पत्थर जब लिख रहे थे
पहाड़ों का इतिहास
पानी का इतिहास लिख रहीं थीं
मछलियाँ उस वक्त
पहाड़ों से टूटकर पत्थर
बहुत पहले ही अलग हो गए थे
मछलियाँ अभी भी तैर रही थीं
पानी में
पहाड़ों का अब कोई दबाव नहीं था
पत्थरों के अस्तित्व पर
कोई छाया नहीं थी
पहाड़ों के खौफ की
उनकी स्मृतियों पर भी
पत्थर लिख सके
पहाडों के भीतर गुफाओं की
सभी पथरीली सच्चाईयां
जिनसे निर्मित हुई थीं ऊंचाईयां
पहाड़ों की
पत्थर लिख सके
लोग डरें नहीं पहाड़ की ऊंचाईयों से
न ही पालें चोटियाँ
अपने सपनों में
पत्थर बता सके
ऊंचाई का भूगोल कभी
ऊंचाई के इतिहास को माफ नहीं करता
वहीं मछलियाँ
पानी के चौतरफा दबाव में
नदी, बादल या समुंदर के विरुद्ध
इतिहास में कुछ नहीं लिख सकीं
मछलियाँ पानी से बाहर नहीं आ सकीं
किसी भी पन्ने में कभी
वे पानी से बाहर आ ही नहीं सकतीं
इसलिये पानी में रहकर पानी का
इतिहास नहीं लिख सकतीं
पत्थरों ने यह भी लिखा है
पहाड़ों के इतिहास में कहीं
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