वे पौधे दलदल में हरे - हरे हवा के झोंकों में झूल रहे हैं दिन खत्म होने को आ गया कि मैंने देखा एक औरत चल रही है वहाँ दलदल के काले जल पर उतरातीं कमल की वे धवल कलियाँ और वहाँ किनारे रात के अंधेरे में खड़ी वह औरत मैंने देखा रात भर जाग ही रहा मैं नींद भी आ नहीं रही देख रहा हूँ वह औरत कितनी दुबली है ! जैसे वहाँ एक पौधा डोलता हुआ हवा में मैं आँखें मूंद लेता हूँ और देखता हूँ उसके गले की धवलता उतराता गोरापन जैसे कमल उतराता है रात के काले जल पर !
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