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Showing posts from January, 2020

केंचुली/ कविता

रचना का तनाव और बचने की चिंता जकड़न के कसे हुए घेरे का सारा कोलाहल जड़ता की आत्मघातक चुप्पी सब छोड़ आता हूँ रोज अपनी कविता में और मैं मुक्ति से भर जाता हूँ उत्फुल्ल मेरी कविता और कुछ नहीं बस मेरी परित्यक्त केंचुली है तो कहो केंचुली के भीतर और क्या मिलेगा ? सिवाय तनाव, चिंता, कोलाहल और चुप्पी के ? मेरी कविता में मुक्ति नहीं बस मुक्ति की कोशिशों की प्रतिध्वनि - भर मिलेगी लेकिन वह मुक्त नहीं कर सकेगी तुम्हें      

नींव कितनी भी ली / गज़ल

नींव कितनी भी ली बड़ी हमने। की तो दीवार ही खड़ी हमने। वक्त का, जो मिज़ाज भी कह दे अब लगा ली है वो घड़ी हमने। हम जहाँ रोज आके मिलते थे जंग अक्सर वहीं लड़ी हमने। अब तो आने दे बादलों को भी देख ली धूप भी कड़ी हमने। दर्श कुछ बातें ही तो कहनी थीं फिर तो कह दीं बड़ी - बड़ी हमने ।

अभी मत छपो

अभी रुको अभी मत छपो निकलकर गीली खाक से अभी तो उतरे हो चाक से कच्चे घड़े हो तुम पंक्ति में पड़े हो तुम पहले धूप या भट्ठी में समय की गरम मुट्ठी में खूब पको फिर कुछ भी बको वह छपेगा पक्के घड़े में समुंदर भी नपेगा मगर अभी रुको अभी मत छपो पहले खूब लिखो फिर कभी कहीँ स्क्रीन पर भी दिखो तब मठाधीश तुम्हें पहचानेंगे संपादक भी लेख़क- कवि मानेंगे पहले तो फुटकर बाज़ार में बिको फिर थोक में खपो फिर तो बार - बार छपो कभी मत रुको मगर अभी रुको अभी मत छपो समय उतना नहीं नृशंस बगुला भी बन सकता है परमहंस किसी महाजन का नाम तो जपो उसके ताप में तो तपो मगर अभी रुको अभी मत छपो                          

झुनझुने / कविता

तुम झुनझुने से खुश होते हो कवि झुनझुने लेकर नहीं आता कभी वह तुम्हें खुश करने कभी नहीं आता  वह तो आता है अपनी तलहथी पर कुछ जलता हुआ- सा लेकर और अंत में उसे अपनी ही कांख में दबाए चुपचाप  चला जाता है वापस  कवि का इस तरह चला जाना तुम्हारे लिए बेमतलब या बेमानी हो सकता है लेकिन उन हाथों के लिए नहीं  जो झुनझुने बनाते हैं तरह - तरह के  और रख देते हैं तुम्हारे भोले - भाले हाथों में वे हाथ कितने चालाक हैं  यह सिर्फ कवि ही जानता है  कवि का इस तरह चला जाना उन चालाक हाथों के लिए बिल्कुल एक सुकूनदेह आश्वासन है कि झुनझुने- उद्योग का भविष्य उज्ज्वल है और आम आदमी का भविष्य है  अब झुनझुने ही  चालाक हाथ जानते हैं कि सदियों से तुम्हारे हाथ पहचानते हैं  सिर्फ झुनझुने  और झुनझुने की आवाज  हर वक्त तुम्हारी बड़ी कमजोरी है तुम्हारी चीख को सुलाने  के लिए यह बड़ी कारगर लोरी  है क्योंकि जिस क्षण  तुम झुनझुने बजाना बंद कर देते हो  तब झुनझुने ही बजाने लगते हैं तुम्हें और झुनझुने ही हो जाते हो तुम लोगों का  झुनझुना - संस्करण देख ठीक उसी क्षण वे सभी चालााक हाथ इकट्ठे होते हैं  अपने - अपने मंच पर  

स्त्री, कविता और तुम / कविता

"अब कोई भी स्त्री तुम्हारी कविता नहीं पढेगी" पृथ्वी की सारी स्त्रियों ने घोषणा की है कल तक, वे पढ़ रहीं थीं पहले तुम्हारी कविताएँ और तुम्हें बाद में या कभी नहीं आज वह पहले तुम्हें पढ़ती हैं और तुम्हारी कविताएँ बाद में या कभी नहीं शायद क्योंकि स्त्रियां जान चुकी हैं कि कविता में उस आदमी का होना उतना जरूरी नहीं जितना जरूरी है उस आदमी में कविता का होना और स्त्री आदमी को पढ़ना चाहती है स्त्रियां अगर कविता पढ़ती हैं तो कविता नहीं पढ़ती वे इसमें पसरी हुई उस आदमी की परछाई पढ़ती हैं जो कविता से बिल्कुल बाहर खड़ा है और ज्यादातर या अक्सर अपनी परछाई से ही लड़ा है लेकिन स्त्रियां आदमी या उसकी परछाई से लड़ती नहीं, उसे सिर्फ पढ़ती हैं स्त्रियां जान चुकी हैं कि वे लड़ने से बेहतर पढ़ सकती हैं चीजों की बेहतरी के लिए चीजों को पढ़ने से बेहतर कुछ भी नहीं और यहाँ तो कविता है, आदमी है इन्हें तो और भी बेहतर पढ़ना है इन्हें बेेहतर पढ़ने के लिए स्त्रियों से बेहतर कोई नहीं स्त्रियां यह जान चुकी हैं तुम्हारी कविता में जो झंझानिल है, महामेघ है, झरना, नदी , समुंदर, पहाड़

जब समय हो जाता है

जब समय हो जाता है लाठी या डंडा तो दिन हो जाता है पत्थर और रात हो जाती है रेगिस्तान हवा में घुलता है जहर और पानी में पलता है पागलपन हम सबके भीतर अंधेरा श्मशान  अचानक चमक उठता है जब समय हो जाता है लाठी या डंडा फूटती है पहली खोपड़ी तर्क की पहला खून बहता है विचारों का पहली लाश गिरती है जुबान की हम सबके भीतर एक आदिम जंगल अचानक हरा हो उठता है जीवाश्म से डायनासोर खड़ा हो उठता है जब समय हो जाता है लाठी या डंडा हम सब उसके सामने बौने हो जाते हैं और थोड़े हल्के भी हमें पीट - पीटकर सिर्फ उछाला जा सकता है ऊपर हवा में फिर दिखाया जा सकता है न्यूज चैनलों पर फिर तबीयत भी पूछी जा सकती है पूछा जा सकता है - "बौने और थोड़े हल्के होकर कैसा महसूस करते हैं आप ? क्या आप बता पाएंगे उस लाठी या डंडे की ठीक- ठीक माप ?" जब समय हो जाता है लाठी या डंडा तबियत नहीं पूछी जाती पूछकर सिर्फ अंदाज़ा लगाया जाता है कि लाठी कितनी ताकतवर है और चोट कितनी कारगर है !