रचना का तनाव और बचने की चिंता जकड़न के कसे हुए घेरे का सारा कोलाहल जड़ता की आत्मघातक चुप्पी सब छोड़ आता हूँ रोज अपनी कविता में और मैं मुक्ति से भर जाता हूँ उत्फुल्ल मेरी कविता और कुछ नहीं बस मेरी परित्यक्त केंचुली है तो कहो केंचुली के भीतर और क्या मिलेगा ? सिवाय तनाव, चिंता, कोलाहल और चुप्पी के ? मेरी कविता में मुक्ति नहीं बस मुक्ति की कोशिशों की प्रतिध्वनि - भर मिलेगी लेकिन वह मुक्त नहीं कर सकेगी तुम्हें
रचनाओं और विचारों को उनके साहित्यिक - सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर बढ़ावा देने के लिए प्रयत्नशील समकालीन रचनाशीलता और विमर्श का एक गैर - व्यावसायिक मंच । संपर्क सूत्र : kumardilip2339@gmail.com