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Showing posts from December, 2019

पिन या सुई / कविता

अलार्म सिर्फ नींद तोड़ सकता है अलार्म से इसलिए सिर्फ नींद ही टूटती है आदमी नहीं जागता आदमी जाग सकता है, जागता है एक छोटी पिन या सुई से जब चुभन उसकी रगों में सरपट दौड़ जाती है इसलिए चुनता रहता हूँ हमेशा पिन या सुई जिंदगी का स्वाद चखने के लिए जिन्हें चुननी है रुई वे चुन लें इत्र मल - मलकर कान में रखने के लिए                    

जनविजय, मानहु मन / पद / 9

जनविजय, मानहु मन की बात। सरस कमल दल छोड़ि चबावै क्यों नाहक खर - पात ? दास कैपिटल पढ़त - पढ़त सब सूखि गयो जज़्बात । कांकर पाथर तर्क उठावै, दंद करै दिन- रात। हाथ हथौड़ा, हंसिया हिय पर, सिर तारा चमकात। बाहर कोट, लंगोटी भीतर रहस रहै यह बात। वोडका पीकै सुरति टिकावै गगन चढ़ै फिर सात । खूब करै भगतन के ऊपर गाली की बरसात। भुज्जा से मुंह फेरि कामरेड पिज्जा पर उड़ि जात। दूरदास अति सुखी देस में, खाकै बासी भात।

अवधू, अबहुं / पद / 7

अवधू, अबहुं पुरस्कृत कीजै। भैंस - पीठ चढ़ि कागा बोलै- ज्ञानपीठ मोहि दीजै। कोकिल, हंस, बकुल, खंजन कौ चुनि - चुनि भूषण दीजै। चील, बाज, उल्लू, बगुला सह अस कस मोहिं गनीजै ? भांति- भांति के पदक जगत में, भूषण- रत्न गहीजै। ये सब माया जानि काग दिल्ली से कूच करीजै। कांव -कांव करि दिन - भर भटकत, बूंद नीर नहिं लीजै। स्वच्छ भया यह देस जभी से आधहि पेट भरीजै। कवित, कथा की बाढ़ चहूँ दिसि नदिया - नार बहीजै। हाथी डूबा जाय, लोमड़ी पुनि - पुनि साहस कीजै। कौन सुनै अब दूरदास ? सब कागभुशुंडि बनीजै। आपहि राम - कथा कहै सब आपहि आप सुनीजै।

मिसिरजी, मांगन नाम / पद / 8

मिसिरजी, मांगन नाम धरावै। सबद - साधना छांडि मिसिरजी, पूजा -पाठ करावै। लेखन - संपादन का व्रत ले चुपके -से खुद खावै,  मधुमेही लेखक कविगण से नित उपवास करावै। झोला लेकर वन - वन भटकै, कंद- मूल चुनि लावै। मुट्ठी - भर परसाद की नाईं बांटि- बांटिके खावै । भग्न खंडहर, गिरि - गह्वर में फोटू बहुत हिंचावै । फोटू को फिर फेसबुकन पर विहंसि विहंसि चिपकावै। बोल न पावै व्यथा - कथा निज नैन सिर्फ मटकावै, 'दूरदास' यह अजब संवदिया पान मूंह चभलावै। 

साधो, वैष्णव- जन / पद / 6

साधो,  वैष्णव- जन के राज। पर चटोर जिह्वा नहिं मानै बिन लहसुन बिन प्याज। मुल्ला दो प्याजा का उचटा- उचटा हुआ मिज़ाज । मुर्ग मुसल्लम क्या छूटा जो छूटी अजां - नमाज। बूझै विरला ही कि प्याज में कामशक्ति कौ राज । बूझै जो यह राज देस की रोज बचावै लाज।   सादा खावै, उच्च विचारै, भाखत साधु - समाज। सात्विक भोजन से ही आवै असली हिन्द स्वराज । महंगाई तो अंकुश मन पर, खरचा पर बैराज। टूटै यह बैराज डुबावै भवनिधि मद्ध जहाज। महंगाई के सूचकांक पर उड़े निरंकुश बाज। गौरैया बस छिलका देखै, बाज उड़ावै प्याज। 'प' से प्याज पढ़ै सब बुतरु, नया ककहरा आज। दूरदास पद, सबद - सबद में, भासै - झांसै प्याज।

यायावर अब सबकै/ पद / 10

यायावर, सब्दक लिंग सुधारै। सबद सबद को पकड़ि सबद से सबद के अंग उघारै। सबद सबद के सब रस लै लै सीसी में रख डारै बूँद- बूँद फिर पाठक गण को पिला - पिला कर तारै। बेद - कितेब चबावै हरदम, कविता, कथा डकारै। फेसबुकी पटल पर दिनभर गजब जुगाली मारै। बात - बात में जब कहिं कोई भाषा - रूप बिगारै। बैद रूप धरि बेगि प्रकट हो व्याधि मूल उपचारै। जोड़ै सबद, मरोड़ै शंका, संशय - लंका जारै। जीवन हो या जटिल व्याकरण, कारक- वचन संभारै। मारग कौन सही, सब पूछै, भटकै,बहुरि विचारै। दूरदास यायावर-पद गहि सीधे सरग सिधारै।

कागभुशुंडि, सुनो

अब यहाँ कोई गरूड़ नहीं है कागभुशुंडि ! तुम्हारी कथा सुनने के लिए इस झड़े बबूल के नीचे इकट्ठे ये सब गरूड़ नहीं,  गरूड़ केे वेश में गिद्ध हैं गरूड़ की भाषा में माहिर ये गरूड़ के संदेह और सवाल उठाने में सिद्ध हैं कागभुशुंडि ! इनमें से कोई संपाती या जटायु नहीं है कोई आत्मा या स्नायु नहीं है इनकी देह में ...तो इनके संदेह कि राम क्या सचमुच ब्रह्म हैं, पर कैसे भरोसा किया तुमने जो शुरू कर दी राम - कथा ? सुनो, सिर्फ यही एक सवाल पूछकर सारे नकली गरूड़ जिंदा हैं और इन्हें बखूबी मालूम है कि यही संदेह या सवाल इन्हें जिंदा रख सकता है सदियों तक इसलिए ये पूछते ही रहते हैं- "राम क्या सचमुच ब्रह्म हैं ?"  बार - बार पूछते रहने से याद रहता है सवाल बनी रहती है अटूट और अभेद्य पूछने की आदत और झूठ की खाल ये जो तुम्हारी राम - कथा सुन - सुन रो रहे हैं केवट, शबरी, सीता, जटायु...में अपादमस्तक खो रहे हैं तुम्हें नहीं पता, कागभुशुंडि  ! ये दरअसल अपने - अपने आंसुओं में अपनी - अपनी खाल धो रहे हैं शबरी का प्रेम या केवट की दुविधा इनके लिए बस रोने की है एक सुविधा अन्यथा नाव 

संपादक जी अबहुं / पद / 5

संपादकजी अबहुं खबर तो लीजै। इतने तेल - मसाजन में तो पत्थर - पोर पसीजै। लिखत - लिखत जब रस - रस नस के सूखै सब रस, छीजै। ऐसे में तब रसजीवी कवि  सोम - सुधारस पीजै। पी - पीकै जब रस नहिं उतरै, फुफ्फुस धूम  करीजै। काया जारै, माया मारै, मसि कागज तज दीजै। निरानंद संपादक को गुड मार्निंग रोज करीजै, और शाम को सोम -सुधा- रस -बोतल एक धरीजै। बोतल देखी 'नेति- नेति' कह ठेपी तोड़ तरीजै, 'ब्रह्मानंद सहोदर" -रस में सहस्रार चढ़ि भींजै। काम करै यह सूत्र सहजहि सिद्ध सुधी गहि लीजै। दूरदास अति मूरख मानुख, सबद- साधना कीजै।