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Showing posts from May, 2021

दुर्योधन और आधुनिक मनुष्य

" मैं धर्म जानता हूँ लेकिन धर्म की ओर मेरी प्रवृत्ति नहीं है और मैं अधर्म भी जानता हूँ पर मेरी उससे निवृत्ति नहीं है।"  दुर्योधन के इस वक्तव्य में आधुनिक मनुष्य की स्थिति बहुत सटीक ढंग से उभर आई है। ऐसा नहीं है कि आधुनिक मनुष्य धर्म नहीं जानता। वह अब क्या नहीं जानता ? आधुनिक मनुष्य तो अब पहले के मनुष्य के मुकाबले ज्यादा ज्ञानी है। हालांकि पहले ज्ञानी मानव का विकास चालीस हजार साल पहले हुआ माना जाता है, परन्तु उसका ज्ञानी होना ऐतिहासिक सभ्यता के विकास के संदर्भ में देखा जाता है न कि उस अर्थ में जिस अर्थ में उसे हम अभी ज्ञानी कहते या समझते हैं । ज्ञानी या जानकार होना इतना कभी आसान नहीं था क्योंकि जानकारी के सारे स्रोत अब चुटकी में उपलब्ध हैं । यही नहीं आज से तीन - चार हजार साल पहले जितनी ज्ञान - परंपराएं, जितने जीवन - दर्शन विकसित होकर उपलब्ध थे उनसे कहीं ज्यादा अभी उपलब्ध हैं । उसके पास अब पिछले पांच हजार साल की सभ्यता का अनुभव है।  जीवन और जगत् को देखने, सोचने और विचारने के जितने ढंग पहले थे उनसे कई गुना ढंग अभी मौजूद हैं । मनुष्य का "बौद्धिक कोश' अब ज्यादा विकसित है।

धर्म मेरी नजर में/1

धर्म वही है जो हमें करूणावान बनाता है , जो हममें यह बोध जगाता है कि दूसरे भी महत्वपूर्ण हैं, दूसरों का अस्तित्व भी उतना ही स्वीकार्य और  आदरणीय है जितना कि अपना अस्तित्व। धर्म हमें ज्यादा मानवीय बनाता है, हमारे मन, हमारी चेतना का परिष्कार करता है, हमें एक दूसरे के करीब लाता है अन्यथा वह धर्म नहीं, बल्कि धर्म के नाम पर कुछ और है। मेरा शुरू से मानना है और यह मानना कोई नया नहीं है कि धर्म की सबसे बड़ी बात आत्मबोध है, आत्मोन्नयन है, चेतना का परम विकास है जिसे आप बुद्धत्व कह लें या मुक्ति कह लें या परम पद अथवा आत्म प्रकाश, इससे कोई फर्क नहीं । सबसे बड़ा सवाल है कि आप ऊपर उठे या नहीं अथवा आप जहाँ थे वहाँ से और नीचे तो नहीं गिर गए। जो ऊपर उठाता है वही धर्म है और जो नीचे गिराता है वही है अधर्म ।  अब हमें देखना होगा कि हमारी गति किधर है। नीचे की ओर या ऊपर की ओर ? हम अपनी चेतना में सिमटकर संकुचित हुए जा रहे हैं या हमारी चेतना फैल रही है ? हम संकीर्ण हुए जा रहे हैं या विस्तृत ? सवाल यह नहीं है कि हम अपने धर्म से कितना और किस तरह चिपके हैं । इस चिपकाव  का कोई मूल्य नहीं । इस चिपकाव से सिर्फ अपना अ