" मैं धर्म जानता हूँ लेकिन धर्म की ओर मेरी प्रवृत्ति नहीं है और मैं अधर्म भी जानता हूँ पर मेरी उससे निवृत्ति नहीं है।" दुर्योधन के इस वक्तव्य में आधुनिक मनुष्य की स्थिति बहुत सटीक ढंग से उभर आई है। ऐसा नहीं है कि आधुनिक मनुष्य धर्म नहीं जानता। वह अब क्या नहीं जानता ? आधुनिक मनुष्य तो अब पहले के मनुष्य के मुकाबले ज्यादा ज्ञानी है। हालांकि पहले ज्ञानी मानव का विकास चालीस हजार साल पहले हुआ माना जाता है, परन्तु उसका ज्ञानी होना ऐतिहासिक सभ्यता के विकास के संदर्भ में देखा जाता है न कि उस अर्थ में जिस अर्थ में उसे हम अभी ज्ञानी कहते या समझते हैं । ज्ञानी या जानकार होना इतना कभी आसान नहीं था क्योंकि जानकारी के सारे स्रोत अब चुटकी में उपलब्ध हैं । यही नहीं आज से तीन - चार हजार साल पहले जितनी ज्ञान - परंपराएं, जितने जीवन - दर्शन विकसित होकर उपलब्ध थे उनसे कहीं ज्यादा अभी उपलब्ध हैं । उसके पास अब पिछले पांच हजार साल की सभ्यता का अनुभव है। जीवन और जगत् को देखने, सोचने और विचारने के जितने ढंग पहले थे उनसे कई गुना ढंग अभी मौजूद हैं । मनुष्य का "बौद्धिक कोश' अब ज्यादा विकसित है।
रचनाओं और विचारों को उनके साहित्यिक - सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर बढ़ावा देने के लिए प्रयत्नशील समकालीन रचनाशीलता और विमर्श का एक गैर - व्यावसायिक मंच । संपर्क सूत्र : kumardilip2339@gmail.com