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Showing posts from December, 2020

अवधू खोजै लैंबरगीनी

अवधू, खोजै लैंबरगीनी  मारुति होंडा हुंडै टाटा ये सब ब्रैंड जमीनी ।  हम तो वेतनभोगी अवधू, इनकम अपनी झीनी। उस पर मंहगाई जीएसटी इनकम टैक्स कमीनी।  धन्य रोग मधुमेह चाय में पीनी कम - कम चीनी।  करत - करत अब कतर - ब्योंत ही  बाकी जिनगी जीनी। घर यह टू बीएचके अवधू, बैंक लोन पर लीनी। दम निकले जब भरत किस्त तब नींबू- पानी पीनी। ऊपर से स्कूल- फीस की मीठी मार महीनी। माॅल रेस्तराँ ब्यूटी पार्लर हैप्पी मील हसीनी।  आप करत हैं काज कौन जो इनकम इतनी कीनी,  कैसे इतना शून्य हे अवधू ! प्रोफिट पर रख लीनी।  बिन पूँजी, बिन मेहनत का वह मारग कौन जहीनी।  दूरदास जब चलकर देखै, खोजै लैंबरगीनी ।      

ग़ज़ल/ बातों से तो

बातों से तो प्यार उड़ाए जाते हो  हाथों से अंगार उड़ाए जाते हो ।  जुमले बस दो - चार उड़ाते थे पहले  अब तो रोज़ हजार उड़ाए जाते हो।  चिनगारी क्या कम थी आग लगाने को जो इतना अंगार उड़ाए जाते हो । मुट्ठी - भर मिट्टी क्या हासिल की तुमने कितना गर्द - गुबार उड़ाए जाते हो ! वो बोटी क्या तेरे हिस्से की थी जो ले - लेकर चटकार उड़ाए जाते हो ?   

ग़ज़ल / वक्त की पदचाप

वक्त की पदचाप सुनकर देखिए  सुन सकेंगे आप, सुनकर देखिए।  हम उबलके जो न कह पाए अभी कह रही है भाप, सुनकर देखिए।  कौन है वो देवता किसका अभी चल रहा है जाप, सुनकर देखिए ।  सूर्य का रथ आ रहा शायद इधर  आ रही है टाप, सुनकर देखिए । क्यों अचानक चीखकर बच्ची कोई   हो गई चुपचाप, सुनकर देखिए 

साधो सत्ता स्वाद निराला

साधो, सत्ता - स्वाद निराला । एक बार जो चढ़ै जीभ पर, बाढ़ै जीभ विशाला।। बाढ़ै दाँत, आँत विस्तारै, धारै हवस कराला ।  दीन हीन जनता की छाती चूसै दीनदयाला । भूखे पेट भजन बनै नहिं चढ़ै न चित गोपाला। पेट भरै तो दुनिया झलकै, झलकै ब्रह्म- उजाला । पत्नी बेटा भाई चाचा सास बहू व साला  जननायक अब अपने जन का राखै खूब खयाला।  कहती थी कितना बचपन में अपनी बूढ़ी खाला।  वक्त पड़े तो तोड़ फेंकना बेटा ! कंठी - माला।  भीतर से सब घी पीवत हैं गुपचुप ओढ़ि दुशाला दूरदास दिन रैन करत बस ऊ ला ला ऊ ला ला । 

साहब ढोवै नाम कबीरा / पद /

साहब, ढौवै नाम कबीरा। तन से साहब लेकिन मन से खुद को  कहत फकीरा। भीतर बाजै पॉप- रॉक पर बाहर ढोल - मंजीरा।  कंठ चढ़ावै पेप्सी कोला होठ जपै जलजीरा। अब नहिं भावै घर में दलिया, दूध -दही या खीरा।  बाहर हैप्पी मील उड़ावै चौमिन, चिकन, पनीरा। पिज्जा- बर्गर के सम्मुख मुख फाड़ै होय अधीरा ए सी जिम फिर, जाइ - जाइके जिस्म बहावै नीरा। वैष्णव जन ही बूझै साहब के तन - मन की पीरा । बहुजन तो बस दूरदास संग गावै पद गंभीरा।