अवधू, अजब देस यह चीन। छींकै तो खांसै यह दुनिया, नासै सबकी नीन। रात पियानो, सुबह बांसुरी, शाम बजावै बीन, सुर - साधक यह गज़ब खिलाड़ी,सुध लै सबकी छीन। मछुआ फेंकै बदल - बदलके जल में जाल नवीन। भांति -भांति के जाल देखिके कनफ्यूजन में मीन। कबहूँ आँख दिखावै कबहूँ थपकी दै नमकीन । नेपथ में कुछ और चलावै ,और दिखावै सीन। आदम के शव पर चमकावै जीडीपी रंगीन, वामबुद्धि अब पूँजी पर तौले आदम की जीन। दुनियां में जो भी लावारिस जंगल, नदी, जमीन उन पर अपना नेमप्लेट रखने में चतुर प्रवीन। ह्वेनसांग - इत्सिंग नहिं भेजै, भेजै जीव महीन, दूरदास जो छुवै जीव को, हूजै क्वारंटीन।
रचनाओं और विचारों को उनके साहित्यिक - सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर बढ़ावा देने के लिए प्रयत्नशील समकालीन रचनाशीलता और विमर्श का एक गैर - व्यावसायिक मंच । संपर्क सूत्र : kumardilip2339@gmail.com