लगाते थे हमेशा जो यहाँ सामान की क़ीमत । लगाएंगे अभी वे ही हमारी जान की क़ीमत । कभी पूछी नहीं उसने वहाँ से ख़ैरियत मेरी, अभी पूछी तो बस पूछी मेरे एहसान की क़ीमत । चढ़े बाज़ार तो चढ़ते चढ़ावे देवता पे भी जुड़ी शेयर के बाज़ारों से क्या भगवान की क़ीमत ? कमी कितनी भी हो जाए यहाँ इंसान की लेकिन कभी चढ़ती कहाँ है शहर में इंसान की क़ीमत । जरा सी गिर भी जाए तो खरीदें और भी अरमां मगर चढ़ती ही जाती और ये अरमान की क़ीमत । करोड़ों हैं परेशां सिर्फ घर के कर्ज भरने में वहीं कुछ पूछते हँसके भी हिन्दोस्तान की क़ीमत । खुली धरती या खाली मेज पे रख खा रहे हैं जो उन्हीं से पूछते हो दर्श दस्तरख्वान की क़ीमत ।
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