दुबई घूमै गनी गनेस । मूस छांडि बिल्ली पे चढ़िकै भरमै देस - बिदेस । कविता- कविता करत फिरै यह कविता का दरवेस। काॅफी पीवत भी कविता में करै नया उन्मेस । कवि के ओलंपिक में आवै, बहु धरि कवि के भेस । तत्त बिचारै, सत्त संभारै, चीन्है असली फेस । बिल्ली के पांवों के पीछे खूब लगावै रेस। समझ न आवै बिल्ली से ही क्यों नुचवावै केस। संपादक- परकासक पीड़ित कवि के कबज, कलेस दूरदास सब हर लै हरदम मर - मर गनी गनेस।
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