प्रेम कविता लिखने से पहले
देखना होगा
अपने - अपने खेतों में
कितना प्रेम उपजाया है तुमने
बंजर होने से कितना बचा पाए हो
उन खेतों को
या वहाँ सिर्फ शब्दों की खेती की है
और काटी हैं फसलें सिर्फ बातों की
देखना होगा
भूख पर लिखी जा रही कविता
के अंत में
उभरा है कितना क्रोध
क्रोध में है कुलबुलाती है कितनी घृणा
और उठता है कितना विरोध या प्रतिरोध
कविता का अंत क्या वाकई अंत है
या शुरुआत है भूख पर किसी अगली कविता की ?
देखना होगा
भूख पर लिखी जा रही कविता
रह जाती है अक्सर क्यों अधूरी ?
और उसे छोड़ आधी या अधूरी
क्या लिखी जा सकती है कोई प्रेम कविता ?
कविता होगी फूल पर
जब खिलेगा फूल
और फूल तब खिलेगा
जब जरूरत भर पानी मिलेगा
जड़ों को और
हवा या धूप मिलेगी पत्तों को।
प्रेम कविता लिखने से पहले
देखना होगा
हवश के कितने सर्गों - खंडों में
बंटा है जीवन का गद्य
और उनमें कहाँ -कहाँ कैद है उसकी भाषा
बुन लिए हैं उनके शब्दों ने
इन सर्गों - खंडों की अभेद्य दीवारों के सहारे
कितने मकड़जाल
देखना होगा
जीवन का गद्य
अगर नहीं है उपलब्ध
अखंड, मुक्त या अप्रतिहत
तो क्या लिखी जा सकेगी
एक मुकम्मल प्रेम कविता ?
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