तुम्हारी चमड़ी की खुरचन में जो मिट्टी है उसमें सिर्फ कश्मीरी केसर नहीं है सांभर है, डोसा भी है खार, मोमो, समोसा भी है मगध की लिट्टी है, चोखा है और इस मिट्टी में रंगों के जो घेरे हैं, घेरे नहीं, बस नजरों का धोखा है तुम्हारी चमड़ी के नीचे जो हड्डी है उसकी वज्र - सफेदी में बस गोकुल का दूध नहीं है उसमें देश के कोने - कोने की हरी - हरी घास है हरेक खेत के सूखे पुआल की कुट्टी है जिसकी एक - एक टुकडी में भारत नाम के एक ही ब्रांड की घुट्टी है जो मां की छाती से छिटककर अब देशभक्ति के बाज़ारों में अलग - अलग लेबल के साथ बिकाऊ है हलांकि हरेक ब्रांड अपने - अपने असर में करीब- करीब उतना ही टिकाऊ है तुम्हारी हड्डी की मज्जा में जो बनता हुआ खून है उसका तीन - चौथाई जो कि दरअसल पानी है वर्णविहीन उसमें सिर्फ गंगा - जमुना नहीं है सिंधु- सरस्वती है, ब्रह्मपुत्र, कोसी है गोदावरी, कावेरी, कृष्णा भी है पानी पर जो खिंची जा रहीं हैं, वे लकीरें नहीं, कुछ और हैं क्योंकि पानी सचमुच पानी है और खून भी सचमुच खून है लकीरें खींचना, उसके टुकड़े करना किसी सनक का ही मजमून है । तुम्हारे माथे पर सिर्फ चंदन
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