तेरी कविता मेरी कविता चकमक चोले में है लिपटी अंदर क्यों अंधेरी कविता ? दिखती कितनी भरी - भरी सी अंदर खाली खाली कविता , तुम कहते हो पी ली कविता मैं भी कहता, खा ली कविता । औरों की तो नकली कहते अपनी कहते असली कविता, खंजडी कविता पैदा होती जीती बनकर डफली कविता । तन से खद्दरधारी होकर मन से कारोबारी कविता, झुग्गी - झोपड़ियों की आंखों की है महल - अटारी कविता । चापाकल का पानी किसकी किसकी है बिसलेरी कविता ? किसकी है निम्बोली ताज़ा किसकी स्ट्राॅबेरी कविता ? फूल - फूल पर मंडरा आती तेरी उड़ती तितली कविता , गूंगी से तो बेहतर है कि बोले कुछ - कुछ तुतली कविता । फटे बांस की बना बांसुरी फूंकी और निकाली कविता, बहरों के जलसों में जाकर पिटवा आई ताली कविता । भींगे माचिस की डिब्बी की अंतिम सूखी काठी कविता , गोली - बम के आगे जैसे बेबस टूटी लाठी कविता । फूंक - फूंक चूल्हे सुलगाती खाला की फुंकनी भी कविता , चौपाटी पर पसरी, चिकनी बाला की बिकिनी भी कविता । नाक - मुंह तुड़वाकर लौटे जब ले गए सवाली कविता, मुस्काते वे लौट रहे थे जब ले गए रुदाली कविता । बड़े बड़े झंडों के नीचे
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