अब मत ढूंढना भाषा में अपना अक्स या वे चिन्ह जो भाषा में तुम्हारे उतरने के सबूत थे और जिन्हें संभालकर रखती थी भाषा पहले कभी भाषा में सब कुछ ढूंढने की तुम्हारी आदत शायद जायज भी थी पहले अब कितनी भी कोशिश कर लो कि जब लौट आओ भाषा से तो छोड़ आओ भाषा में अपने शब्द, रूप, रस गंध , स्पर्श और भी बहुत कुछ अपना जो तुम्हारे अस्तित्व को देते हैं आकार और अर्थ परन्तु भाषा को ये सब संभालकर रखना स्वीकार नहीं है अब वह अब लौटा देती है सब कुछ यहाँ तक कि तुम्हारे पैरों की निशानी भी अब नहीं मिलेगी वहाँ भाषा उसे अब मिटाना सीख चुकी है पद - चिन्ह का अजायबघर नहीं बनना चाहती है वह अस्थियों की तो बात ही नहीं है वहाँ अपने नाखून या बाल का छोटा - सा टुकड़ा भी नहीं मिलेगा तुम्हें स्तूप या मकबरा बनने से साफ इंकार कर चुकी है भाषा भाषा को मूर्तियां पसंद नहीं अब इसलिए भाषा के किसी चौराहे पर किसी की कोई मूर्ति भी नहीं मिलेगी वह अब चौराहा बनना भी नहीं चाहती जो बनाए जाते हैं सिर्फ मूर्तियों को खड़ी करने के लिए भाषा अब किसी मठाधीश का कमरा नहीं अब वह सेतु है पृथ्वी और आकाश के बीच का जो किसी को याद न
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