न्यूटन के नियम के पार बुद्धिजीवी वर्ग में एक परिपाटी या ट्रेंड अक्सर देखने को मिलता है, वह है जीवन की हरेक व्यक्तिगत या सार्वजनिक बातों या गतिविधियों की छानबीन कर उनमें निहित या प्रकट वैज्ञानिक एवं अवैज्ञानिक बातों के बीच एक मोटी रेखा खींचना। रेखा के इस पार के सब बुद्धिचर वैज्ञानिक चिंतन या वैज्ञानिक अप्रोच के वाहक - गाहक और क्रांति - चेतना के सूत्रधार कहलाते हैं और उस पार के लोग बुद्धू, अंधविश्वासी, पारंपरिक, यथास्थितिवादी और पुरातनपंथी जड़ता के पोषक दक्षिणपंथी माने जाते हैं । वैज्ञानिक चिंतन की पक्षधरता ने निस्संदेह मनुष्य की विकास - यात्रा में ऐसे पड़ाव जोड़े हैं कि उनपर गर्व किए बिना मनुष्यता संतुष्ट नहीं हो सकती। जीवन, जगत् और ब्रह्मांड के प्रति वैज्ञानिक अप्रोच ने मानव- सभ्यता को बिल्कुल नई दिशा और नया स्वरूप दिया है, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती परन्तु इस पक्षधरता ने मनुष्य में कुछ मानसिक अराजकताएं और उलझनें भी पैदा की हैं जो बिल्कुल नए तरह की हैं जो मुख्यतया मनोवैज्ञानिक हैं और जिन्हें सिर्फ वैज्ञानिक तरीके या प्रणाली से समझ पाना शायद नामुमकिन है। इस संबंध में न्यूटन के
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