रेणु की रचनाशीलता में तीन तत्व एक साथ हमेशा मौजूद दिखाई पड़ते हैं - तीव्र अनुभूति , पैनी दृष्टि और अभिव्यक्ति की आतुरता। उसमें अनुभूति की जो तीव्रता है वह कवि की है, दृष्टि का जो पैनापन है वह चिंतक का है और जो अभिव्यक्ति की कशमकश है वह कथाकार की है। यही वज़ह है कि वे अपने लिए जो लेखन - क्षेत्र या विषय चुनते हैं, उनके लिए अलग शिल्प गढ़ते हैं या कहें कि अलग शिल्प में रचना को गढ़ते हैं ताकि उस अनुभूति, दृष्टि और अभिव्यक्ति को एक साथ साधा जा सके। वे जब रिपोर्ताज भी लिखते हैं तो उनकी नैसर्गिक किस्सागोई वहाँ भी मौजूद रहती है। इससे उनके रिपोर्ताज भी अपनी रोचकता में एक बहुवर्णी क्षितिज लेकर बिल्कुल नए अंदाज और अलग कलेवर में प्रकट होते हैं और अपनी शैली तथा शिल्प में भी सबसे भिन्न उत्कर्ष रचते हैं । इन रिपोर्ताज में रेणु की कहानियों के बीज भी यत्र- तत्र बिखरे देखे जा सकते हैं । रेणु के सभी अठारह - उन्नीस रिपोर्ताज जो उपलब्ध हैं, वे विषय, प्रस्तुति और शैली के हिसाब से एक से बढ़कर एक हैं और रेणु
रचनाओं और विचारों को उनके साहित्यिक - सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर बढ़ावा देने के लिए प्रयत्नशील समकालीन रचनाशीलता और विमर्श का एक गैर - व्यावसायिक मंच । संपर्क सूत्र : kumardilip2339@gmail.com