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Showing posts from June, 2022

ग़ज़ल / आसमानी तख्त से

ग़ज़ल /  आसमानी तख्त से नीचे उतरकर देखिए।  खूबसूरत है जमीं भी, चल- ठहरकर देखिए।  तब दिमागी शोर का एहसास भी हो जाएगा।    दिल के सन्नाटे से तो पहले गुज़रकर देखिए।  और भी है बहुत कुछ रफ्तार के बाहर यहाँ,  इक दफा रफ्तार से पूरा उबरकर देखिए।  आप भी महसूस कर लेंगे जमाने का दबाव वक्त के सीने पे थोड़ा – सा उभरकर देखिए। रोज औरों को सुधरने की नसीहत दे रहे कारगर होगी नसीहत, खुद सुधरकर देखिए।  देखते हैं आप उनके हाथ ही पत्थर वो क्यों  आपके हाथों में भी तो है वो पत्थर देखिए।                    

अपने ही देश में/ कहानी

  अपने ही देश में   मार्च अभी गिरा नहीं और इतनी गर्मी ! इस बार धंधे में भी शायद जल्दी ही गर्मी लौटेगी।   रेशमा खुश होकर अपनी कमर से लटकी थैली में हथेली डालकर चिल्लर टटोलती है और सामने खड़ा एक ग्राहक के हाथ में रख   फिर दूसरे के हाथ में नारियल - पानी और स्ट्राॅ मुस्कुराते हुए रख देती है। यह मुस्कराहट उसके होठों पर   परत दर परत चढ़ती ही जाती है और चेहरे से नीचे गले तक पसीनों की उतरती बूँदें पसरकर कभी गले के बहुत नीचे तक भी सरक जाती हैं। अच्छा हुआ बेटी सुचिता भी आ गई। हर रविवार को वह यहाँ आ ही जाती है। अपनी माँ के धंधे में उसके हाथ बँटाना उसे अच्छा तो लगता ही है , इसे वह अपना कर्तव्य भी समझती है। रेशमा आँचल से अपना चेहरा पोंछ चौक के ठीक सामने सातेरी माँ के मंदिर के कंगूरे की तरफ नजर उठाती है। कंगूरे पर लहराती पताकाएँ ... सालों से देखती आई है। इन्हें देख उसे बड़ा सुकून मिलता है। उसे लगता है ये पताकाएँ नहीं बल्कि देवी माँ की   शक्ति ही साक्षात् लहरा रही है। कभी - कभी मुँह से निकल भी जाता है -   “सब देवी माँ की ‘कुरपा’ है !” मंदिर में घंटा – ध्वनि उठती है -   टन् टन् टन् ...। रेशमा के मन मे