डर “तो क्या ‘पहलवान’ जी गिरफ़्तार...?” लोग एक – दूसरे से दबी जुबान से पूछ रहे थे। किसी को पक्का पता नहीं था कि पहलवान जी गिरफ़्तार हुए या फरार ! पर एक बात तो पक्की थी कि वे इस गाँव या इलाके में कल से नहीं हैं। वे जब गाँव या आस – पास के इलाके में रहते हैं तो कुछ और ही रौनक रहती है और लोगों को हवा में एक खास तरह की वज़न- सी महसूस होती है। आज सुबह से ही न तो कोई रौनक है न ही हवा में कोई ऐसी वज़न है जो यहाँ उनकी मौजूदगी की आहट देती हो। यद्यपि वह वो पहलवान नहीं थे जो जन्माष्टमी अथवा दशहरा आदि के मेले की कुश्ती या बाहर किसी ओलंपिक जैसे खेल- महाकुंभ में जाकर जोर – आजमाइश करते हैं। उनकी पहलवानी कुछ अलग किस्म की थी। पुलिस अथवा विरोधी गैंग को धूल चटाने में जो उनकी ताकत और पैंतरे थे, वे किसी पहलवान से कम नहीं थे। अपराजेयता के तमाम लोक – स्वीकृत पैमाने पर वे खरे उतरते थे इसलिए लोग उन्हें ‘पहलवान’ कहा करते थे। स्थानीय पुलिस और मीडिया भी उन्हें ‘पहलवान’ नाम से ही जानते थे। उनकी ताकत की महिमा ही थी कि दर्जनों आपराधिक मामलों के दर्ज होने के बावजूद पुलिस उन्हें हाथ लगाने से कतराती थी। उनके ऊपर किसी
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