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Showing posts from July, 2019

कोई बुराई नहीं है

अब यह स्वीकार कर लेने में कोई बुराई नहीं है कि हममें से किसी में फिलहाल कोई अच्छाई नहीं है क्योंकि अच्छाई अभी तक नहीं बन पाई है जीने या मरने की कोई अनिवार्य शर्त या असाध्य मजबूूरी अभी भी असुरक्षित है जंगल से हमारी दूरी कोई बुराई नहीं है यह कहने में भी कि अभी तक नहीं बना पाए हम धरती को एक घर या आंगन नहीं बना पाए हम आसमान को एक छत या सामयाना नहीं रख सके एक, सूरज या चांद को अंधेरे में जलाए हमने अपने - अपने सूरज और देखे अपने - अपने चांद अपनी - अपनी खिड़कियों से हमेशा यह कहने में भी कुछ बुराई नहीं कि विरोध में उठी मुट्ठी या प्रतिरोध में तनी कुहनी में अभी भी जो ताकत है उसमें प्रेम नहीं, घृणा है, अमृत नहीं, विष है इसलिए विरोध हो या प्रतिरोध सब टांय - टांय फिस्स है यह मान लेने में भी क्या बुराई है कि अबतक भाषा नहीं बना सके हम खुद को नहीं रच सके तभी तो बनाते रहे बम, रचते रहे चक्रव्यूह एक - दूसरे के विरुद्ध खड़े हुए जन - समूह यह भी सही है कि कविता हमारे लिए है अभी भी है जैसे कोई पर्यटक वीजा आत्मा के राज्य में घूम- फिर कर मौज - मस्ती कर लौटते आए हैं और वहां की स्थाय