बामयान बनाम एक निर्वासित देश


ईश्वर पर तुमने 
कुछ क्यों नहीं कहा बुद्ध  ?

उस वक्त भी तो ईश्वर ही था 
मनुष्यता का सबसे बड़ा मुद्दा
लोग ईश्वर के पक्ष में थे या विपक्ष में  
ईश्वर पर कोई चुप नहीं थे  
सभी मुखर थे उतने ही 
जितने मौन थे तुम अकेले 

ईश्वर पर जिसने भी कुछ कहा 
वह ईश्वर - तुल्य हो गया या देवता 
परन्तु मौन रहे तुम 
बने रहे मनुष्य, खड़े रहे 
मनुष्य के बीच और मनुष्य के साथ

तुमने क्यों चुना 
ईश्वर या देवता के बदले मनुष्य 
स्वर्ग के बदले यह पृथ्वी, यह जगत् 
ब्रह्म- ज्योति के बदले तुम 
लौ - मुक्त दीए के भेद खोलते रहे
रोशनी पर सिर्फ मुस्कुराए
और आजीवन अंधेरे पर ही बोलते रहे 

तुमने वह सब क्यों चुना जिनसे
मनुष्यता की कोई विश - लिस्ट नहीं बन सकती ?
दुख था, लोग कहाँ थे दुखी  ?
लाखों में सिर्फ तुम एक हुए थे दुखी 
शेष सभी तो व्यस्त थे 
वे मस्त थे 
अपनी - अपनी पनही - पगड़ी में 
अपने -अपने देवता या ईश्वर के साथ

सभी खुश थे 
जो खुश नहीं थे वे 
अपनी नाराजगी को नियति समझ
देवता या ईश्वर के पैरों पर लोटते थे
खुशियों के लिए उनके चरणोदक भी घोंटते थे

किसे एहसास था अपनी जकड़नों का ?
जंजीरें थीं 
खोने के लिए नहीं, पहनने के लिए थीं
मुक्त क्यों होना था
मुक्ति के बाद अगर 'शून्य' ही आना था 
ऐसा गणित किसको स्वीकार था ? 

कुछ खोकर कुछ पाना ही जीवन - सूत्र था
अहं खोकर आत्मा को पाने की आदत थी
परंपरा भी थी 
संसार खोकर परमात्मा को पाने की
और तुम्हारा 'निव्वाण' ?
इसमें पाना क्या था ?  
यहाँ तो सिर्फ खोना था, खो जाना था

कम मूल्यवान् को छोड़
परम मूल्यवान् को पाने की लालसा में
कितना विप्र - विवेक था 
कितनी थी वणिक् - बुद्धि या चातुर्य 
यही समझाते रहे तुम 

ईश्वर या स्वर्ग पर 
तुमने तो कुछ कहा ही नहीं
कह देते कि वह है 
या कह देते कि वह नहीं है 
हाँ या ना ही तो कहना था 
कौन पूछता था प्रमाण भी 
जो तुम्हें दिक्कतें आतीं  

ईश्वर अगर सत्ता था
धर्म अगर संसद था तो तुम
या तो पक्ष- विपक्ष के मध्य कुर्सीविहीन गलियारे में रहे 
या संसद के बाहर तुम दूर
वेणु - वन में विचरते रहे 
मध्य - मार्ग पर पुन: पुन: विचारते रहे 
सोचते रहे कि ईश्वर पर 'हाँ 'कर सकता है 
विवेक को मृत और तर्क को विकलांग 
और 'ना' कहने से खो सकती है करुणा 
मिट सकता है प्रेम 

तुम सही थे 
यह सिद्ध होने में सदियाँ लग गईं
'हाँ ' वाले ने तर्क खोया 
'ना' वाले ने खो दी करुणा 

तुम्हारे मौन में जो 
तर्क के खूंटे पर करुणा का वितान था
ठीक उसी के तले 
'हाँ ' वाले ने 'ना' की बुत समझकर तुम्हें 
तोड़ दिया बामयान में 
'ना' वाले ने तुम्हें 'हाँ ' का 'अफ़ीम' - प्रचारक समझ
कर दिया तुम्हें तुम्हारे उस देश से बेदखल 
जो अबतक निर्वासित है 
जिसका नक्शा निगलकर 
गरज उठती हैं अभी भी बंदूक की क्रूर नलियाँ 


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