कागज़ी हैं मुट्ठियाँ ये , कागज़ी आवाज़ है। वक्त से मुठभेड़ का यह क्या गज़ब अंदाज़ है। खूबसूरत - सी जो वो है आसमां में उड़ रही कागज़ी चिड़िया है कोई , कागज़ी परवाज़ है। दौर कैसे – कैसे आएँगे अभी तो और भी यह अभी क्या देखते हैं ये तो बस आगाज़ है।
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