अवधू, अबहुं पुरस्कृत कीजै।
भैंस - पीठ चढ़ि कागा बोलै- ज्ञानपीठ मोहि दीजै।
कोकिल, हंस, बकुल, खंजन कौ चुनि - चुनि भूषण दीजै।
चील, बाज, उल्लू, बगुला सह अस कस मोहिं गनीजै ?
भांति- भांति के पदक जगत में, भूषण- रत्न गहीजै।
ये सब माया जानि काग दिल्ली से कूच करीजै।
कांव -कांव करि दिन - भर भटकत, बूंद नीर नहिं लीजै।
स्वच्छ भया यह देस जभी से आधहि पेट भरीजै।
कवित, कथा की बाढ़ चहूँ दिसि नदिया - नार बहीजै।
हाथी डूबा जाय, लोमड़ी पुनि - पुनि साहस कीजै।
कौन सुनै अब दूरदास ? सब कागभुशुंडि बनीजै।
आपहि राम - कथा कहै सब आपहि आप सुनीजै।
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