संपादकजी अबहुँ खबर तो लीजै।
इतने तेल - मसाजन में तो पत्थर - पोर पसीजै।
लिखत - लिखत जब रस - रस नस के सूखै सब रस, छीजै।
ऐसे में तब रसजीवी कवि सोम - सुधारस पीजै।
पी - पीकै जब रस नहिं उतरै, फुफ्फुस धूम करीजै।
काया जारै, माया मारै, मसि कागज तज दीजै।
निरानंद संपादक को गुड मार्निंग रोज करीजै,
और शाम को सोम -सुधा- रस -बोतल एक धरीजै।
बोतल देखी 'नेति- नेति' कह ठेपी तोड़ तरीजै,
'ब्रह्मानंद सहोदर" -रस में सहस्रार चढ़ि भींजै।
काम करै यह सूत्र सहजहि सिद्ध सुधी गहि लीजै।
दूरदास अति मूरख मानुख, सबद- साधना कीजै।
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