मेनसियस और उसका चरवाहा

मेनसियस भले ही ईसा पूर्व तीसरी - चौथी सदी का आदमी था लेकिन उसकी सोच इक्कीसवीं सदी के मनुष्य से कहीं बेहतर था। सोच का समय के आगे होना उतना महत्वपूर्ण नहीं होता जितना महत्वपूर्ण सोच का बेहतर होना होता है। समय से आगे की सोच मनुष्यता को बेहतर बना सकेगी यह कहना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि इसका ऐतिहासिक अनुभव थोड़ा निराशाजनक रहा है। 
आश्चर्य होता है कि जब प्राचीन भारत में अहिंसा के पक्ष में या कहें कि राजनीतिक हिंसा के निषेध में एक सकारात्मक माहौल बन रहा था, उसी कालखण्ड में चीन में भी मेनसियस नाम का एक असाधारण आदमी
लियांग के राजा ह्सियांग को देश और समाज को एक करने और एक रखने का गुर बता रहा था। 
राजा के साथ मेनसियस ने जिस साक्षात्कार का हवाला दिया है उसमें उसने कुछ महत्वपूर्ण बातें बताईं हैं । ये बातें आधुनिक "ह्सियांग" के लिए बहुत मूल्यवान् हैं क्योंकि ये आधुनिक "ह्सियांग" सोच या आचरण तो विभाजनकारी रखते हैं लेकिन समाज - देश की एकता के लिए  दिन - रात फ़िक्रमंद रहते हैं। उनकी इस फ़िक्र में उन बातों का कोई जिक्र नहीं होता जिनका ज़िक्र करना मेनसियस कभी नहीं भूलते। 
कहते हैं, साक्षात्कार के बाद, जब मेनसियस बाहर आया तो उन्होंने वहाँ मौजूद लोगों में एक तरह की उत्सुकता देखी। शायद लोग जानना चाह रहे होंगे कि अंदर क्या कुछ हुआ अथवा राजा नज़दीक से कैसा लगता है ! 
आख़िर  मेनसियस को कहना ही पड़ा, " जब मैंने उन्हें दूर से देखा तो वह कोई शासक या राजा बिल्कुल नहीं लग रहा था। जब मैं उनके नज़दीक आया तो मुझे उन्हें देखकर ऐसा कुछ नहीं लगा कि उनमें कुछ ऐसा है जिससे उनका आदर किया जा सके। अचानक उन्होंने पूछा," समस्त राज्य को एक आकाश के नीचे कैसे स्थापित किया जा सकता है?"
मैंने कहा," इसे एक होकर ही कायम किया जा सकता है।"
"तो इसे एक करेगा कौन ?"
मैंने कहा," वह जिसे आदमी की हत्या करने में कोई आनंद नहीं आता।"
" तो फिर एकता हमें कौन दे सकता है ?" - निराश राजा ने पूछा । 
मैंने उत्तर दिया," यह सब उन्हें उन सब चीजों से मिलेगा जो कुछ भी आकाश या स्वर्ग के नीचे है। महाराज! आपको मालूम है कि अनाज कैसे उपजाया जाता है ? सातवें- आठवें महीने में जब सुखाड़ आता है और पौधे सूखने लगते हैं, तब आकाश में घने बादल इकट्ठे होते हैं और घोर बारिश होने लगती है ताकि फसलें हरी - भरी हो जाएँ। जब ऐसा हो रहा होता है तो इसे कोई रोक पाता है ? 
और जो इस पूरे राज्य के लोगों के  गड़ेरिए - चरवाहे हैं उनमें से कोई ऐसा नहीं है जिसे लोगों को मारने में आनंद न आता हो। अगर उनमें से कोई भी एक ऐसा हो जो आदमी की हत्या कर आनंदित न होता हो तो एक आकाश के नीचे इकट्ठे सब लोग ऐसे चरवाहा की तरफ गरदन उठा - उठाकर देखते हैं। ऐसा अगर वास्तव में हो तो ही लोग उसकी तरफ देखते हैं और बिल्कुल वैसे ही दौड़ पड़ते हैं जैसे निचली ढलान पाकर पानी सब तरफ से आ - आकर तेजी से एक तरफ दौड़ पड़ता है और उसे कोई रोक नहीं पाता ।"
मेनसियस की बात सुनकर लोगों पर क्या प्रभाव पड़ा, नहीं मालूम। परन्तु मेनसियस अभी उन लोगों के लिए एक प्रश्न जरूर छोड़ जाता है जो आधुनिक लोकतंत्र के स्वतंत्र नागरिक हैं जिनके लिए यह जानना अब ज्यादा जरूरी है कि अपनी गरदन उठाकर किसकी तरफ देखा जाए ताकि सब एक रहें, किसी के खून की एक बूँद गिरे तो लगे कि यह खून पूरे देश का गिरा है या पूरे समाज का बहा है। मेनसियस का यह चरवाहा इस दुनिया की जरूरत है भले ही वह अपने ही घर चीन में गैर - जरूरी या बेघर हो गया हो। □□□


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