December 12, 2020

साहब ढोवै नाम कबीरा / पद /

साहब, ढौवै नाम कबीरा।

तन से साहब लेकिन मन से खुद को  कहत फकीरा।


भीतर बाजै पॉप- रॉक पर बाहर ढोल - मंजीरा। 

कंठ चढ़ावै पेप्सी कोला होठ जपै जलजीरा।


अब नहिं भावै घर में दलिया, दूध -दही या खीरा। 

बाहर हैप्पी मील उड़ावै चौमिन, चिकन, पनीरा।


पिज्जा- बर्गर के सम्मुख मुख फाड़ै होय अधीरा

ए सी जिम फिर, जाइ - जाइके जिस्म बहावै नीरा।


वैष्णव जन ही बूझै साहब के तन - मन की पीरा ।

बहुजन तो बस दूरदास संग गावै पद गंभीरा।  


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