नींव कितनी भी ली बड़ी हमने।
की तो दीवार ही खड़ी हमने।
वक्त का, जो मिज़ाज भी कह दे
अब लगा ली है वो घड़ी हमने।
हम जहाँ रोज आके मिलते थे
जंग अक्सर वहीं लड़ी हमने।
अब तो आने दे बादलों को भी
देख ली धूप भी कड़ी हमने।
दर्श कुछ बातें ही तो कहनी थीं
फिर तो कह दीं बड़ी - बड़ी हमने ।
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