हम सब किसी भी भाषा में पैदा हों

हम किसी भी भाषा में पैदा हों 
उसमें हमेशा होती है एक तीर्थंकर चिड़िया 
सुबह -सुबह गाती है बहुत मीठा 
गीतों में देती है खबर कि आकाश कितना अनंत है 
और पांखें हैं कितनी छोटी 
और कितनी छोटी है यह पृथ्वी भी

गीत सुनता है सबसे पहले
आस - पास के मुहल्ले का कोई मुर्गा 
गीत जितना गुनता नहीं है 
उससे ज्यादा कोशिश करता है उसे गुनगुनाने की 

चिड़िया के गीत 
उसके पठारी कानों से नीचे अंदर तक नहीं धंसते 
उसकी आत्मा की झिल्ली झंकृत होती है सिर्फ बांग से 
तीर्थंकर चिड़िया यह जानती है बखूबी 
इसलिए मुर्गे की भाषा में 
गीतों का अनुवाद खुद करती है 
तीर्थंकर का अनुवादक बनना 
तीर्थंकर की मजबूरी है 

मुर्गे समझ सकें गीत का सच 
मुर्गे से ज्यादा यह गीत के लिए जरूरी है 
क्योंकि गीत का सच एक है 
और मुर्गे हैं अनेक 
एक सच की सही और पूरी समझ  आने से 
सभी मुर्गे बन सकते हैं मनुष्य खुद - ब - खुद 
अन्यथा सतही या अधूरी समझ 
मुर्गे को गिरा देती है घोर अंधेरे कुएं में 

मुर्गे को लगता है कि वह 
कुएं में भी ला सकता है ब्रह्ममुहूर्त 
बांग देकर उगा सकता है सूरज
क्योंकि ऐसा कभी नहीं हुआ कि 
वह बांग दे और सुबह न हो 

मुर्गे को यकीन है 
तीर्थंकर चिड़िया के जाने के बाद 
गीत के सच को सिर्फ बांग ही ढो सकती है
वही तो थी अंतिम तीर्थंकर 
अब और कोई चिड़िया आ नहीं सकती 
गीत दुबारा नहीं उतर सकता 
उसी बांग में है अनूदित गीत का अंतिम संस्करण  
इसीसे आएगा सूरज 
और रौशन होगा कुआँ एक दिन
इसी यकीन से मुर्गा दे रहा है बांग 

पृथ्वी कुओं से भर गई है 
हरेक कुआँ भर रहा है 
अपने - अपने मुर्गे की बांग से 
चिड़िया का गीत 
अब कहीं नहीं है पृथ्वी पर 








  




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