यह कैसा समय है

ये कैसा समय है 
जब हमें पैदा करने होते हैं
बच्चों से ज्यादा सन्नाटे
और सन्नाटे को पैदा करने से भी ज्यादा
जरूरी समझा जाता है 
सन्नाटे को सब तरफ बिछाना 

यह कैसा समय है 
घर को सन्नाटे से घेर, घर को जिंदा रखना
और बंद खिड़कियों के शीशे से 
बाहर पड़ोसी खिड़कियों को घूरना
घूरती आंखों में  तैरते मृत्यु - भय को
संक्रमण से बचाना 
पृथ्वी को मनुष्यविहीन होने से बचाने के लिए निहायत जरूरी समझा जाता है 

यह कैसा समय है 
कि लिफ्ट के अंदर या बाहर होते ही 
जब महिला की प्यार - भरी आवाज़ में  
बज उठता है निर्देश कि 
"कृपया दरवाजा बंद करें "
तो यह आज का सबसे बड़ा निर्देश लगता है
और ध्वनित होता है 
उसकी अनुगूँज का विस्तारित मतलब भी कि
"कृपया सन्नाटा पैदा करें "

यह कैसा समय है 
कि दूरी अस्तित्व के लिए एक अनिवार्य शर्त बन जाती है 
और तमाम नजदीकियां बन जाती हैं 
सामूहिक आत्महत्या की ठोस वजूहात 

यह कैसा समय है 
कि प्रयोगशाला में बैठकर आदमी 
ढूंढते - ढूंढते मृत्यु के संभावित कारक 
या मारक विषाणु 
खोजने लगता है 
मृत्यु को संक्रामक बनाने के तरीके और बनाने लगता है घातक संक्रामक हथियार

शायद प्रयोगशाला के शातिर मालिक का सख्त आदेश है और इच्छा भी 
कि ऐसे हथियार बनाए जाएँ जो 
मनुष्य को वंचित कर सके
उसकी योग्य और स्वाभाविक मृत्यु से 
महा विनाश के खौफ से 
पूरी पृथ्वी को डरा सके 
ऐसे हथियार बनाए जाएँ जिनकी जद में 
आया हुआ हरेक आदमी बन सके
उसका हथियार 
आपस में बना सके हथियारों की अविच्छिन्न श्रृंखला 
बन सके एक दूसरे का लोक -सुलभ हत्यारा 
और वह शातिर सूत्रपाती 
इंसानियत के इलाके का क्रूर उत्पाती
अपनी चपटी नाक पर चढ़े मास्क के  नीचे से उठी 
गोल - गोल मुस्कान को  
अपने चिकने मुखमंडल पर पसार 
गिनेगा एक - एक लाश  
गल्व्स में छुपी अपनी ऊंगलियों से 
कितने बुर्जुआ मरे कितने मरे सर्वहारा
इन आंकड़ों पर
बाज़ारधर्मी कामरेड की शैतानी मुस्कान उदासीन है 
यह तो ट्रेड वार का पहला ही सीन है 

यह कैसा समय है 
बस्तियां तब्दील हो गई हैं
अंधेरी गुफाओं में और 
सड़कों पर एकाएक उग आए हैं जंगल 
बड़े  - बड़े बूढे झबरे पेड़  
गुफाओं की दीवार या पेड़ों के मनहूस कंधों पर  
दिन भर लटके रहते हैं  
खौफ के काले चमगादड़ 
झुंड में करते हैं बस रात का इंतजार  
जब अंधेरे में वे मनाएंगे जश्न 
बस्तियों और सड़कों की क्रंदनविहीन मृत्यु का 
और अपने सार्वभौम बंधुत्व का दिग्विजयी एलान करेंगे 
एक आश्वस्ति के साथ कि 
अब पृथ्वी पर रहेंगी
सिर्फ अंधेरी गुफाएं 
उगेंगे और भी जंगल, झबरेदार पेड़ 
और भी लंबी होंगी रातें 
और सूरज धीरे - धीरे मद्धिम पडता जाएगा
लेकिन चांद - तारे बढ़ जाएंगे कई कई गुना 
एकछत्र राज होगा 
तमाम संसाधन और अवसर पर निष्कंटक एकाधिकार होगा

कहते हैं 
इसी उम्मीद में चमगादड़ अपनी आबादी बढा रहे हैं 
यह कैसा समय है  ! 



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