पूरा यकीन है मुझे / कविता

तुम्हारी चमड़ी की खुरचन में 
जो मिट्टी है उसमें 
सिर्फ कश्मीरी केसर नहीं है सांभर है, डोसा भी है
खार, मोमो, समोसा भी है
मगध की लिट्टी है, चोखा है 
और इस मिट्टी में रंगों के जो घेरे हैं, 
घेरे नहीं, बस नजरों का धोखा है

तुम्हारी चमड़ी के नीचे जो हड्डी है 
उसकी वज्र - सफेदी में 
बस गोकुल का दूध नहीं है 
उसमें देश के कोने - कोने की हरी - हरी घास है
हरेक खेत के सूखे पुआल की कुट्टी है 
जिसकी एक - एक टुकडी में 
भारत नाम के एक ही ब्रांड की घुट्टी है
जो मां की छाती से छिटककर  
अब देशभक्ति के बाज़ारों में 
अलग - अलग लेबल के साथ बिकाऊ है
हलांकि हरेक ब्रांड अपने - अपने असर में 
करीब- करीब उतना ही टिकाऊ है 

तुम्हारी हड्डी की मज्जा में 
जो बनता हुआ खून है उसका तीन - चौथाई  
जो कि दरअसल पानी है वर्णविहीन
उसमें सिर्फ गंगा - जमुना नहीं है 
सिंधु- सरस्वती है, ब्रह्मपुत्र, कोसी है
गोदावरी, कावेरी, कृष्णा भी है 

पानी पर जो खिंची जा रहीं हैं,
वे लकीरें नहीं, कुछ और हैं
क्योंकि पानी सचमुच पानी है 
और खून भी सचमुच खून है
लकीरें खींचना, उसके टुकड़े करना
किसी सनक का ही मजमून है । 

तुम्हारे माथे पर सिर्फ 
चंदन का टीका नहीं है 
ऊपर टोपी भी है 
टीका के पीछे और टोपी के नीचे 
जो दिमाग है
उसमें सिर्फ लाल रौशन वाम भाग नहीं है 
उसमें दक्षिण भी है  
जिसमें रवीन्द्र का लहराता सार्वभौम राग है 

तुम्हारे दिमाग़ की नसें सिर्फ मनु की नहीं है 
कुछ पेरियार की और अंबेडकर की भी हैं
सर सैयद, तिलक और गांधी की तो हैं ही
कुछ लोग कह रहे हैं कि
जिन्ना और सावरकर की भी हैं   

तुम्हारी धड़कन का जो अभंग है 
वह सिर्फ नामदेव का नहीं है 
अलवार का है, तिरुवल्लुवर का भी
उसमें नानक और फरीद तो हैं ही 
तुलसी, रैदास, कबीर भी है 
और हाँ, खुशरू जायसी... भी पीछे नहीं हैं।

तुम्हारे सर के जंगली बाल और नाखून 
सिर्फ पतंजलि ने नहीं काटे हैं 
बुद्ध और महावीर ने भी कैंची - खुर चलाई है
तुम्हारे सफेद बालों में सिर्फ चार्वाक ने ही नहीं 
गोशाल और वेलट्ठिपुत्त ने भी काली मेहंदी लगाई है।

तुम्हारे दिल और दिमाग के बीच 
कितनी दूरी होगी 
और उसके बीच माया या मुक्ति 
क्या ज्यादा जरूरी होगी
अकेले आदिगुरु ने तय नहीं किया है
उसमें कपिल से लेकर ओशो भी हैं

यही नहीं 
तुम्हारी स्वस्थ आंखों के आगे 
स्पष्ट दर्शन की अधिकतम दूरी क्या होगी
क्या होंगे तुम्हारी बीमार आंखों के लिए 
चश्मों के पावर
इसके लिए कोई एक दृष्टि - चिकित्सक 
अधिकृत नहीं रहा कभी 

किसी एक बहादुर दरजी ने 
तय नहीं किया कभी 
कि तुम्हारी कमीज में होंगे 
मुक्ति के कितने बटन 
या उसकी आस्तीन कितनी लंबी होगी 

रैदासी कुनबे की कोई एक नहीं 
कई पीढ़ियां खप गईं, 
समा गईं चमरौधे जूते में 
तुम्हारे पैरों के लिए बनाते 
अलग-अलग नाप और डिजाईन के जूते 
ताकि तुम्हारे पैर बचे रहें
और तुम्हारे कदमों में सुरक्षित बचा रहे
तुम्हारा आत्मविश्वास 

यहाँ तक कि तुम्हारी थाली में 
कितना साग - पात होगा 
या कितना होगा मटन
ये तय करने में भी 
तुम अकेले नहीं रहे कभी

...तो अभी तुम अकेले कैसे कह सकते हो 
कि तुम कर सकोगे टुकड़े 
उस मिट्टी, पानी, हवा के 
जो तुम्हारे अस्तित्व में समया है ?
या उन शानदार हाथों के
जिन्होंने तुम्हें भारतीय बनाया है 
और हर बार
जानवर होने से बचाया है 

अगर कर भी लोगे 
तो उन टुकडों को क्या वाकई  अ-भारत कर सकोगे ?
मुझे संदेह है 
इस संदेह पर पूरा यकीन है मुझे। 




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