जब तुम नहीं रहोगे

जब तुम नहीं रहोगे
( भारत यायावर के प्रति)

कभी-कभी
सोचता हूं
जब तुम नहीं रहोगे
कहाँ रहूंगा मैं
शायद तब बेमतलब ही बहूंगा मैं
समय की धार में
और तुम खड़े - खोये उस पार में
प्रस्थान पीढ़ी के साथ कहीं फिर व्यस्त हो जाओगे
मिल जाएंगे तुम्हें वहाँ तुम्हारे हजारों बिछड़े हुए
और भूल जाओगे शायद मुझे
छोड़कर अकेला
मेरे भरोसे इतना बड़ा मेला
जहाँ सभी पूछेंगे
“ कहां गया वो तुम्हारा ...?”
कुछ तो बताना पडेगा मुझे
पर झूठ तो बोलना सिखाया नहीं तूने
जीते -  जी दिखाया नहीं तूने
झूठ की कमाई का भी कोई रास्ता
जैसा रहा वास्ता
तुम्हारा सादगी से
रहा लगाव मनुष्यता की बेचारगी से
मुश्किल होगा मुझसे
यह सब निभाना
जब नहीं रहोगे तुम
हो जाएंगे सामने से गुम
मेरे रास्ते
दूर किसी मील के पत्थर पर
बस लिखा पाऊंगा तुम्हारा नाम
लेकिन वहाँ नहीं होगा लिखा
तेरा पता
तो लोग कहेंगे
“ छाती फाड़कर तू दिखा “
पर कैसे पाऊंगा बता
तबतक तुम हो चुके होगे
मेरी सांस का हिस्सा
जिसका एहसास उसे महसूसने में होगा। □□□

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