कविता / दिलीप दर्श
मैं
जिंदगी की
महीन - महीन बातें लिखता हूँ
वे महीन बातें
जिनकी बारीकियों में बुने जाते हैं
हमारे दिन
और हमारी रातें
मैं उन्हीं दिनों उन्हीं रातों की बातें लिखता हूँ
मैं कविता नहीं लिखता
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