अवधू मन में बहुत भड़ास

दूरदास के पद / दिलीप दर्श 

अवधू, मन में बहुत भड़ास।
क्रोध, जलन,नफरत हम ढोवैं, रोवैं पीड़ पचास। 

खूब मजा आवै जो करिहैं औरन का उपहास।
औरन जब उपहास उड़ावैं खुद क्यों होय उदास ?

खुद को ताड़ बतावै औरन को समझैं यदि घास,
क्यों रोवैं फिर सिर धुनि - धुनि  जब बहै पवन उनचास ?

भाँति-भाँति के लोग जगत में, अपने - अपने क्लास।
सबकी अपनी भूख यहाँ पर सबकी अपनी प्यास ।
 
थोड़ा लिखकर बहुत छपावैं खुद को समझैं खास।
अपनी महिमा गावैं खुद ही, छप छप - रोग छपास। 

निंदक- आलोचक उड़ि आवैं जब - जब इनके पास
दूरदास इनके मुख से तब निकसै शहद - सुबास।  





No comments:

Post a Comment

नवीनतम प्रस्तुति

अवधू, हम तो हैं भौंचक्का