लगाते थे हमेशा जो / ग़ज़ल

लगाते थे हमेशा जो यहाँ सामान की क़ीमत । 
लगाएंगे अभी वे ही हमारी जान की क़ीमत ।

कभी पूछी नहीं उसने वहाँ से ख़ैरियत मेरी,
अभी पूछी तो बस पूछी मेरे एहसान की क़ीमत । 

चढ़े बाज़ार तो चढ़ते चढ़ावे देवता पे भी
जुड़ी शेयर के बाज़ारों से क्या भगवान की क़ीमत ?

कमी कितनी भी हो जाए यहाँ इंसान की लेकिन 
कभी चढ़ती कहाँ है शहर में इंसान की क़ीमत ।

जरा सी गिर भी जाए तो खरीदें और भी अरमां 
मगर चढ़ती ही जाती और ये अरमान की क़ीमत ।

करोड़ों हैं परेशां सिर्फ घर के कर्ज भरने में 
वहीं कुछ पूछते हँसके भी हिन्दोस्तान की क़ीमत । 

खुली धरती या खाली मेज पे रख  खा रहे हैं जो 
उन्हीं से पूछते हो दर्श दस्तरख्वान की क़ीमत ।

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