दीवार / 3

एक कविता/दीवार/3
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पहले दीवार नहीं बनती
पहले बनता है अंधेरा

अंधेरा जबतक फैलता है
दीवार नहीं बनती है

बहुत सर्द मौसम में
जब समय होने लगता है ठंडा
और प्रेम बिल्कुल बर्फ
तो सिकुड़ने लगता है अंधेरा
जमने लगता है वह
उसके बीच से उगने लगती है
पतली दीवार कहीं कहीं

अंधेरा चला जाता है
खड़ी रह जाती है दीवार

दीवार अंधेरे की ही वंशज है
हम उसमें अंधेरे की जीन ढूंढ सकते हैं।
       
    

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