इधर ही कहीं

मुझे परवाह नहीं 
कि उधर नहीं गया मैं ऊपर 
खूब ऊपर 
मुझे तो अपनी माँ के पास रहना है, 
बैठ 
इसी गोद में 
देखना है नीला आकाश 
पैठ
इसीके अतल जल में 
ढूंढना है मुझे उस आकाश की
नीली परछाई 
जो खो गई है असमय शायद  
इधर ही कहीं !

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