तेरी कविता मेरी कविता

तेरी कविता मेरी कविता
चकमक चोले में है लिपटी
अंदर क्यों अंधेरी कविता  ?

दिखती कितनी भरी - भरी सी
अंदर खाली खाली कविता ,
तुम कहते हो पी ली कविता
मैं भी कहता, खा ली कविता ।

औरों की तो नकली कहते
अपनी कहते असली कविता,
खंजडी कविता पैदा होती
जीती बनकर डफली कविता ।

तन से खद्दरधारी होकर
मन से कारोबारी कविता,
झुग्गी - झोपड़ियों की आंखों
की है महल - अटारी कविता ।

चापाकल का पानी किसकी
किसकी है बिसलेरी कविता ?
किसकी है निम्बोली ताज़ा
किसकी स्ट्राॅबेरी कविता  ?

फूल - फूल पर मंडरा आती
तेरी उड़ती तितली कविता ,
गूंगी से तो बेहतर है कि
बोले कुछ - कुछ तुतली कविता ।

फटे बांस की बना बांसुरी
फूंकी और निकाली कविता,
बहरों के जलसों में जाकर
पिटवा आई ताली कविता ।

भींगे माचिस की डिब्बी की
अंतिम सूखी काठी कविता ,
गोली - बम के आगे जैसे
बेबस टूटी लाठी कविता ।

फूंक - फूंक चूल्हे सुलगाती
खाला की फुंकनी भी कविता ,
चौपाटी पर पसरी, चिकनी
बाला की बिकिनी भी कविता ।

नाक - मुंह तुड़वाकर लौटे
जब ले गए सवाली कविता,
मुस्काते वे लौट रहे थे
जब ले गए रुदाली कविता ।

बड़े बड़े झंडों के नीचे
नारे खूब लगाती कविता
ढोल पीटकर जन - गण - मन से
भय और भूख भगाती कविता

बजट नाम से बांची जाती
संसद में सरकारी कविता ,
सब सुनते हैं जैसे सचमुच
जनहित में है जारी कविता ।

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