छाँड़हु देस विदेश भ्रमण अब, बैठहु एक ठिकान ।
फेंकहु सूट- बूट अरु धारहु नव गैरिक परिधान।
डारहु गर रुद्राक्षमाल, अरु भाल त्रिपुंड निशान।
पद्मासन में बैठ रीढ अरु सीना राखहु तान।
दृष्टि टिकावहु सुन्न गगन में, अनहद पे धरु कान।
ऋद्धि- सिद्धि से छिन पल बदलहु रूप - रंग पहिचान,
शक्तिपीठ पर बैठ शक्ति की लीला करहु महान।
लेहु शरण में सकल भगत जो भीत,भ्रष्ट, हैवान,
राउर नाम जपै अरु होवै निडर, शिष्ट इंसान
।
लाइट, कैमरा माया जानहु, सत है एकहि ज्ञान,
दूरदास बस चकाचौंध से होत न कोउ महान।
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