घर के अंदर क्यों कहीं भी घर नहीं दिखता,
और छत से भी तो कुछ ऊपर नहीं दिखता।
धुंध ने आँखों पे डाला है असर कैसा
बेहतरी का ख्याल भी बेहतर नहीं दिखता।
कौन टूटे ताने – बाने फिर सजाएगा
शहर में अब एक भी बुनकर नहीं दिखता।
शास्त्र मौसम का हमें अब, वे पढ़ाएंगे
धूप – बारिश में जिन्हें अंतर नहीं दिखता।
घोर अमृतकाल है या है कोई जादू
विषधरों के झुंड में, विषधर नहीं दिखता।
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