अवधू, लीजौ अब इक झोरा

दूरदास के पद / दिलीप दर्श 

अवधू, लीजौ अब इक झोरा।
एक हाथ में धरहु कमंडल, दोसर हाथ कटोरा।

यह कंजूसन की नगरी है, भेंटै बहुतहि थोरा।
मांगै पाकल आम चार, कर आवै एक टिकोरा।

पग पग डोलत है नगरी में, भेष बदलकर चोरा,
आप सरल साधू हे जोगी, जीवन जोखिम घोरा।

पीवत रस नारंगी अब तो कंठ न भींजै मोरा,
अमृतफल कुछ लावहु जाकर अगम हिमालय छोरा। 

कैमरा, लाइट, चैनल, रैली व्यर्थ गयो ढिंढोरा,  
दूरदास अब चलहु गुफा में, काटत है इंजोरा। 



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