रेणु के बहाने कुछ बातें

भारत यायावर के रेणु - प्रेम की स्मृति के बहाने कुछ रोचक बातें /  

......सचमुच यह बड़ा संकट था रेणु जी के लिए जो टल गया या जिसे टाल लिया गया। खुले में शौच सचमुच एक आनंदप्रद सुविधा है बशर्ते कि आप कोई कवि हों। सुनने में अटपटा जरूर लगता हो, गाँव में जब चोमास खाली रहता है दूर दूर तक, कातिक अथवा चैत महीनेवाली चाँदनी जब शाम से ही बिछनी शुरु हो जाती है और चढ़ती रात के पहले चरण में जरा लोटा लेकर गाँव के पूरब निकलना उन खेतों की ओर ...अहा ! अप्रतिम सुख..फिर कहीं लोटे को सामने साक्षी रखकर बैठ जाना उन्मुक्त मन से ...शरीर और मन हल्का होकर कह रहा हो ...चांद के पार चलें ...लेकिन भैया हम रूसी नहीं, अमेरिकी नहीं ..हमें चांद के इस पार ही अच्छा लगता है, चाँद के उस पार न जाने क्या होगा ! ...तो रूसियों में चाँदनी रात के प्रति इतना मोह क्यों था ? वहाँ रूस में चाँद नहीं दिखते? तारे भी नहीं? ठीक है आकाश में नहीं दिखते, क्रेमलिन के झंडे में तो दिखते होंगे ? ...खैर जो भी हो, रेणु जी आपने अच्छा नहीं किया। उन्हें जाने देते, उन्हें पता चलता हिरामन इतनी आसानी से नहीं मिलता। हीराबाई तो और भी नहीं। आपको भी तो आसानी से नहीं मिली होगी ! फिर भी उन्हें खोजने तो देते ? रूसी वैसे भी खोजने में माहिर होते हैं, कई वैज्ञानिक खोजें उन्हीं की देन हैं, फिर उनमें भी अपना ही खून है, मध्य एशिया के दिन भूल गये रेणु जी ? आदिम रात्रि की महक याद नहीं ? स्टेपी के घास के मैदान ? हमारी गायें चरती थीं, हम एक ही गौमाता का दूध पीते थे, जब हम एक ही भाषा बोलते थे, कुछ भाई उत्तर चले गए कुछ इधर आ गए मलेरिया के मच्छर को  आँख दिखाने घास के मैदान पर भी।  मेरीगंज वाली चांदनी बिछती होगी। हम भूल गए, रूसी भाई वह भूल नहीं पाए शायद। तभी तो तारों के साथ चांद का स्मारक झंडों पर बनाया...और हम गाते रहे ...स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है अवनि और अंबरतल में ...मुझे इस पंक्ति का गुप्त रहस्य अभी पता चल रहा है। यायावर की नजर भी कहाँ कहाँ जाती है! चांदनी रात में खुले खेत में लोटा लेकर बैठे बिना इस गुप्त रहस्य को यायावर ने कैसे समझा होगा, यह सोच सोचकर मेरी हालत रूसी छात्रों जैसी हो रही है । 

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