लौट आया सूरज
पूरब से पश्चिम अपना घर
वह नहीं आई लौटकर
अपने घोंसले में
उसे पता था
आजादी के आसमान में
कुछ खतरनाक परिंदे मँडराते रहते हैं
परन्तु उसे चाह थी उड़ान की
कहाँ परवाह थी अपनी जान की
छोटी- सी चिड़िया थी वह
रोज निकलकर उड़ान पर
लौट आती थी
आज नहीं लौटी वह
लौटे हैं सिर्फ
उसके छोटे - छोटे पंख
टूटकर गिरते हुए बेजान सूखे पत्तों की तरह
वृक्ष को ढाँपती
साँझ की गहराती उदासी में
घोंसला स्तब्ध... डूब रहा है
वे खतरनाक परिंदे
लौट रहे हैं फिर सुबह की आस में
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