दूरदास के पद / दिलीप दर्श
अवधू, रहि - रहि आवै छींक।
क्या जाने कब - किधर देश में हूजै पर्चा लीक।
लाखों खर्च कियो कोचिंग पर, क्लास करायो नीक,
बच्चा सब दिन - रात पढ़ाई करि - करि ह्वै रहि सींक।
सबकी यहि उम्मीद कि अबकी लगै निशाना ठीक,
मातु - पिता के अरमानों पर होवैं सफल सटीक।
लेकिन पर्चा - पूत चलै जब लीक छाँड़ि बेलीक,
राह मिलै पर्चा - टपकावन शूर कई निर्भीक।
पर्चे की क्या गारंटी है, बारिश चढ़ि रहि पीक,
दूरदास जब राम - लला की छत ही ह्वै रहि लीक।
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