भगतू, मन की बात सुनो

दूरदास के पद/ दिलीप दर्श 

भगतू, मन की बात सुनो।
बात सुनै नहिं जो भी उनसे सीना ठोंक ठनो। 

नानक, गोरख, सूर, कबीरा, तुलसी और घनो,
देख लजावैं ये सब तुमको, ऐसा भक्त बनो। 

अक्ल बड़ी या भैंस न सोचो, बेशक भैंस चुनो
बैठ पीठ पर नाक, आँख मुँह, कान अपान मुनो।

पान,फूल नैवेद्य चढाओ, महिमा खूब गुनो,
बिछ जाओ कालीन सरीखा, बन पंडाल तनो।

'राष्ट्रवाद' की नव धुनकी है, पूरा राष्ट्र धुनो।
एक सूत से अंधभक्ति की चादर रोज बुनो। 

तेरे भी मुख - कमल खिलेंगे, सुन लो भक्त - जनों,
दूरदास, सिर तक कीचड़ में पहले खूब सनो। □□□



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