दूरदास के पद / दिलीप दर्श
अवधू सब शब्दक व्यापारी।
क्या कवि -लेखक क्या आलोचक सब के सब बाज़ारी।
बिक्री और खरीदी में अब बँटि रहि दुनिया सारी।
शासन भी व्यवसाय भयो है लाभ - अलाभ विचारी।
रिश्तों - नातों पर भी पूँजी की ह्वै पहरेदारी,
पूँजी नहिं तो रिश्तों - नातों की हूजै बटमारी।
भोग भयो है जीवन - शैली, रोग नया नित भारी।
योग पतंजलि का अब 'योगा' बनकर रोग उतारी।
सबद बेचकर भिखमंगा अब भोगै महल - अटारी।
दूरदास तो सबद बेचकर सरपट भयो भिखारी।
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