अवधू बजरंगी चालीसा

अवधू, बजरंगी चालीसा।
सुन - सुन काँपै बुद्ध, मुहम्मद, राम - कृष्ण अरु ईसा। 

जय सियराम सुनत अब सबके मन में उपजत टीसा,
गरजहु जय श्रीराम नहीं तो भरवावहु मुँह सीसा। 

बजरंगी ऐसन कि जिनसे काँपत रोज कपीसा, 
ऐसन राम - भगत पर तुलसी न्यौछावर दस - बीसा। 

पूछत है गौरी उदास हो - " सुनहु नाथ गौरीसा !"
कबतक रहिहैं राम विरथ अरु रथारूढ़  दससीसा ? 

अब तो जय है जगन्नाथ की, एकहि धाम उड़ीसा, 
दूरदास धन धन्य अयोध्या का ही लेकर वीसा। 








No comments:

Post a Comment

नवीनतम प्रस्तुति

अपने पैरों से जिन्हें आया न चलने का हुनर