ऊधौ, मन में धन की प्यास

दूरदास के पद/ दिलीप दर्श 


ऊधौ, मन में धन की प्यास।

पहले प्यास बुझावहु, छांडहु जप - तप, जोग, उपास।


धन आवै तो दुनिया झलकै, ढलकै पुष्प - सुबास।

धन बिन दिन में भी अँधेरा, भासै कहाँ उजास ?


धन की बारिश के बादल जब उड़ि उड़ि भरै अकास।

नाचै मन का मोर धरा पर बरसै हूब- हुलास।


जब सुखाड़ पसरै तो मन ह्वै विह्वल बहुत उदास।

वक्त कटै नहिं क्लेश घटै नहिं कंटक लगै कपास।


दीन धरम सब धन के मारग, दुनिया धन की दास।

दूरदास को समझ न आवै क्या घोड़ा क्या घास।

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