अवधू, धन का मारग झीना।
अब यहि मारग श्रेष्ठ कहावै, बाकी मारग हीना।
पर्स गरम तो मन ह्वै शीतल, बाजै अंतर वीना।
ठंडा पर्स, न झलकै दुनिया, छूटै बहुत पसीना।
धन आवै तो मन बौरावै, बाढ़ै छप्पन सीना।
पतझड़ में भी कोयल कूकै, मौसम हरियर भीना।
दोस्त - मित्र अरु सगा - बंधु सब बांटै प्रेम - पुदीना,
दफ्तर या बाजार हर जगह हांसै देख हसीना।
धन जावै, पूछै नहिं कोई, चकमक ह्वै सब छीना,
रोवै रोज कहै निसि- वासर - सब जन बहुत कमीना।
जीते जी कुछ हाथ न आवै, मुश्किल ह्वै अब जीना,
अब यहि मारग श्रेष्ठ कहावै, बाकी मारग हीना।
पर्स गरम तो मन ह्वै शीतल, बाजै अंतर वीना।
ठंडा पर्स, न झलकै दुनिया, छूटै बहुत पसीना।
धन आवै तो मन बौरावै, बाढ़ै छप्पन सीना।
पतझड़ में भी कोयल कूकै, मौसम हरियर भीना।
दोस्त - मित्र अरु सगा - बंधु सब बांटै प्रेम - पुदीना,
दफ्तर या बाजार हर जगह हांसै देख हसीना।
धन जावै, पूछै नहिं कोई, चकमक ह्वै सब छीना,
रोवै रोज कहै निसि- वासर - सब जन बहुत कमीना।
जीते जी कुछ हाथ न आवै, मुश्किल ह्वै अब जीना,
दूरदास भी धन का मारग मजबूरन ही लीना।
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