अवधू धन का मारग झीना / दूरदास के पद


दूरदास के पद / दिलीप दर्श 




अवधू, धन का मारग झीना।
अब यहि मारग श्रेष्ठ कहावै, बाकी मारग हीना। 

पर्स गरम तो मन ह्वै शीतल, बाजै अंतर वीना। 
ठंडा पर्स, न झलकै दुनिया, छूटै बहुत पसीना।

धन आवै तो मन बौरावै,  बाढ़ै छप्पन सीना।
पतझड़ में भी कोयल कूकै,  मौसम हरियर भीना। 

दोस्त - मित्र अरु सगा - बंधु सब बांटै प्रेम - पुदीना, 
दफ्तर या बाजार हर जगह हांसै देख हसीना।  

धन जावै, पूछै नहिं कोई, चकमक ह्वै सब छीना,
रोवै रोज कहै निसि- वासर - सब जन बहुत कमीना। 

जीते जी कुछ हाथ न आवै, मुश्किल ह्वै अब जीना,
दूरदास भी धन का मारग मजबूरन ही लीना। 

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