साहित्य और वैचारिकी का प्रगतिशील मंच
कल
जो तोड़ रहे थे फूल
निचोड़ रहे थे बादलों को
पहाड़ों को खोद रहे थे
और सुरक रहे थे नदियाँ
आज
वे लिख रहे हैं कविता
फूलों पर, बादलों पर
पहाड़ों और नदियों पर.
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