वे लिख रहे हैं

 


कविता / दिलीप दर्श 



कल

जो तोड़ रहे थे फूल

निचोड़ रहे थे बादलों को

पहाड़ों को खोद रहे थे

और सुरक रहे थे नदियाँ

आज

वे लिख रहे हैं कविता

फूलों पर, बादलों पर

पहाड़ों और नदियों पर.


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