'रेत से नदी तक' कवि हितेश व्यास का पहला कविता - संग्रह है। इनकी कविताएँ विचार करती हुई पाठकों से संवाद करती हैं। प्रस्तुत हैं इस संग्रह की तीन चयनित कविताएँ।
वो कौन है /
वो कौन है ?
जो मेरे देश की फिज़ा में
जहर घोल रहा है
कौन है वो ?
जो कट्टरता की जय बोल रहा है
जहाँ भी मुझे नदी पार करनी होती है
वहाँ तीर्थ होता है
ये कौन - सा तीरथ है
जो खून की नदी पार करने के बाद आता है
एक वो रावण था जो सामने गुर्राता था
चीखता - चिल्लाता था सामने भिड़ जाता था
एक ये रावण है जो मुस्कराता है
मुस्कुराते हुए फोटो खिंचवाता है
फोटो खिंचवाते हुए हाथ मिलाता है
हाथ मिलाते ही गले लग जाता है
गले लगते हि बघनख
घोंप जाता है पीठ में
पंच परमेश्वर होते हैं
ये कैसे पंच हैं जो परमेश्वर नहीं हैं
वो कौन है जो मेरे देश को
कागज समझता है और
नादान बच्चे की तरह
खींचना चाहता है
लींगटा।
वसंत ने कहा /
ज्यादा से ज्यादा तुम क्या कर सकते हो ?
हजामत ? कर दो, रुण्ड- मुंड कर दो
मैं आऊँगा
पेड़ों की विग लगाता हुआ
इससे अधिक तुम्हारी औकात क्या है
तुम पत्तों की रही रोशनी बुझाकर
पीली कर सकते हो क्रमशः अंधेरा
मैं आऊँगा पत्तियों को लाल करता हुआ
मैं जानता हूँ तुम करना चाहोगे प्रकृति को नंग - धड़ंग
मैं आऊँगा कृष्ण की तरह वासंती साड़ी बनता हुआ
पतझड़ ! मैं तुम्हें कोई चाल चलने नहीं दूँगा
मैं यौवन हूँ, जीवन को ढलने नहीं दूँगा।
हाशिया और पेज /
तय करो कि तुम्हें
सरसराकर सिमटना है
हाशिये की तरह
या पेज की तरह फैलकर फड़फड़ाना है
हाशिया नेपथ्य है
पेज मंच
नेपथ्य में चेहरे हैं
मंच पर मुखौटे
तय करो कि तुम्हें
चेहरा चाहिए या मुखौटा
हाशिया सूत्रधार है
पेज पर नाचती कठपुतलियाँ
हाशिया फुटपाथ है
पेज सड़क
फुटपाथों पर बसता है मेरा देश
चंद लोग पहुँच जाते हैं
सड़क से संसद तक
बाकी लोग
सड़क के नियमों का पालन करते हुए
गुजार देते हैं आजादी के पचास साल
गाँधी हाशिये पर रहा
पेज पर फैल गई राजनीति
हाशिये पर कृष्ण थे
पेज पर होता रहा महाभारत
हाशिये पर सृजन है
पेज पर बिछा है संस्थाओं का जाल
हाशिया टेढ़ी- मेढ़ी पगडंडी है
जिस पर अकेले चलना होता है मुँह अंधेरे
तब आती है मंजिल पर सुबह
पेज भव्य किन्तु सपाट राजपथ है
जिस पर से निकलते हैं जुलूस
जिनमें भीड़ तो होती है
चेहरा नहीं होता ।
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