ग़ज़ल/ दिलीप दर्श

 

यूँ नहीं मजबूत अपनी डोर करने में लगे हैं 


यूँ नहीं मजबूत अपनी डोर करने में लगे हैं।

वे सभी को खींच अपनी ओर करने में लगे हैं।


एक दिन में ही अँधेरा दूर करना है जो उनको

वे हमारी साँझ को ही भोर करने में लगे हैं।


जो हुआ देखा सभी ने, देखकर सब सो गए

बस अकेले आप ही क्यों शोर करने में लगे हैं ?


तेल – बाती करके हमने दीप तो बाले मगर

दीप अपने ही तले इंजोर करने में लगे हैं।


हम बचा पाएँगे कैसे अपने हिस्से का मकान

लोग पूरी नींव ही कमज़ोर करने में लगे हैं।


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