अवधू, छाँड़हु मन की बात

दूरदास के पद/ दिलीप दर्श 


अवधू, छाँडहु मन की बात।
मानहु भारत - भाग्य- विधाता ! जन - गण- मन की बात। 

राखहु मन ही मन में, कबहूँ कहहु न मन की बात,
यदि हमरी नहिं मानहु, मानहु कवि रहिमन की बात।

हरियाली नहिं आवै केवल करि - करि वन की बात,
थन में दूध न आवै, जपि- जपि केवल थन की बात।

परजाजन पगुरावै कब से सुन राजन की बात। 
दंतहीन के सम्मुख जैसे दँतमंजन की बात। 

हम नहिं बूझैं पाँच टिरिलियन के अर्जन की बात,
हम तो बूझैं पाँच किलो बस फ्री राशन की बात।

मन की बात न भावै जन को, करु बहुजन की बात। 
दूरदास अरदास करै रख निज मन, मन की बात। 



No comments:

Post a Comment

नवीनतम प्रस्तुति

अवधू, हम तो हैं भौंचक्का